गृह मंत्री अमित शाह बंगाल दौरे पर हैं। कारण आपको भी पता होगा कि अगले साल वहां चुनाव होने हैं। चुनाव तैयारी में बीजेपी पीछे कभी नहीं रहती। वह अभी से 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही है।
खैर राजनीतिक दल है तो चुनाव की तैयारी तो करेगी ही लेकिन जब देश के हालात सही न हों तब संसद को बंद करके चुनाव प्रचार में जुटना भी सही नहीं है।
बीजेपी का चुनाव प्रचार एक कड़ी के रूप में शुरू होता है जिसमें समय-समय पर लोग जुड़ते जाते हैं। इसमें सबका रोल तय होता है फिर चाहे वह एक कार्यकर्ता हो या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
उत्तर भारत में बीजेपी ने राम के सहारे अपनी खूब राजनीतिक रोटी सेंकी। हर चुनाव में राम मंदिर का जिक्र होता था अब उसको बनाये जाने का होने लगा है।
जय श्री राम के नारे से बीजेपी ने मतदाताओं को खूब लुभाया। उत्तर प्रदेश के चुनाव हों या बिहार के, इस नारे ने बीजेपी की डूबती नैय्या को जरूर बचाया है।
केवल यहीं तक नहीं यह नारा राजस्थान से लेकर दक्षिण भारत तक बीजेपी के साथ बना रहा लेकिन पश्चिम बंगाल में शायद बीजेपी को इससे ज्यादा फायदा न हो इसीलिए वह इससे थोड़े समय के लिए किनारा करना भी चाह रही है।
दरअसल बंगाल की संस्कृति कुछ ऐसी है कि भले जय श्री राम का नारा एक देवता के लिए प्रयोग किया जाता हो लेकिन वहां इसका असर नहीं है।
पश्चिम बंगाल में आंतरिक रूप से एक मजबूत बंगाली राष्ट्रवाद हमेशा से ही देखने को मिला है। बंगाल का राष्ट्रवाद मराठी राष्ट्रवाद की तरह भले ही उग्र न हो, पर बाहरी लोगों के प्रभुत्व के ख़िलाफ़ हमेशा ही रहा है।
बीजेपी ने एक तरह से ‘जय श्री राम’ नारे का इस्तेमाल एक समुदाय विशेष को डराने के लिए किया। इसका फायदा उसे हिन्दू वोट के एकजुटता से मिला। लेकिन ऐसा ही वह ‘जय मां काली’ नारे के साथ नहीं हो सकता।
न तो इस नारे से एक समुदाय को डराया जा सकता है और न ही इससे हिन्दू वोट एकजुट होगा। बंगाल एक संस्कृति से ज्यादा एकजुटता से जुड़ा हुआ है न कि धार्मिक रूप से।