बिहार में चुनावी समीकरण कब उलट जाएं अब इसका किसी को अंदाजा नहीं है। एक दिन पहले तेजस्वी यादव जल्द चुनाव होने की बात कहते हैं और अगले दिन बीजेपी अपनी ही सहयोगी पार्टी के 6 विधायकों को तोड़कर अपने में मिला लेती है।
भले ही बिहार के ये विधायक न हों लेकिन इसका असर नीतीश कुमार की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पड़ सकता है। भले नीतीश कुमार कोई प्रतिक्रिया न दें लेकिन अरुणाचल प्रदेश के 6 विधायकों का बीजेपी में शामिल हो जाना उनके लिए बड़े झटके से कम नहीं है।
2019 में अरुणाचल में हुए विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 7 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी को 41। बिहार के अलावा यही राज्य था जहाँ जेडीयू को सफलता मिली थी।
नीतीश के 6 विधायक बीजेपी में जाने के बाद 60 सीटों वाली विधानसभा में अब बीजेपी के विधायकों की संख्या 48 हो गयी है जबकि जेडीयू के पास सिर्फ़ एक विधायक बचा है। राज्य में कांग्रेस और नेशनल पीपल्स पार्टी के चार-चार विधायक हैं।
इस बार बिहार में भले नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए हैं लेकिन बीजेपी अपना बनाना चाह रही है। और इस बार बीजेपी के विधायक भी नीतीश की पार्टी से ज्यादा हैं। मुख्यमंत्री के साथ दो उप-मुख्यमंत्री भी बिहार में बनाये गए हैं और खास बात यह कि दोनों संघ के पुराने सिपाही हैं।
नीतीश के सहयोगी सुशील को बीजेपी ने किनारे करके केंद्र में बैठा दिया है। अब बिहार में नीतीश कहीं-न-कहीं अकेले फंस गए हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि बंगाल चुनाव के बाद बिहार में बीजेपी अन्य पार्टियों के विधायकों को अपनी ओर खींच सकती है। और अगर ऐसा हुआ तो जदयू टूट के कगार पर पहुंच जाएगी। शायद यह नीतीश के लिए राजनीति में सन्यास का समय ला देगा।
लेकिन यह सब कयास ही हैं। फिलहाल हमें बंगाल चुनाव तक इंतजार तो करना ही होगा।