BY- PRIYANSHU KUSHWAHA
नीतीश ने कभी भी स्वजातीय पहचान की राजनीति नहीं की। ये शूरू से ही अति पिछड़ों की आवाज उठाते रहे। कर्पूरी जगदेव की राजनीति करते रहे। लेकिन ऐसा करने से उन्हें कोई खास लाभ तब तक नहीं हुआ जब तक कि कोयरी – कुर्मी समाज ने नीतीश कुमार को नेता मानते हुए अपना मोर्चा नहीं खोला था। कुर्मी चेतना रैली में लाखों की अनुशासित भीड़ से यह तय हो गया कि बिहार में नीतीशे कुमार है। भले ही उस भीड़ को गर्व करने के सिवाय कुछ ख़ास न मिला हो, लेकिन लकीर तो खीचा ही जा चुका है। वो लकीर अब दिल्ली की तरफ बढ़ रहा है।
नीतीश कुमार अब यूपी के हवाले हैं। वे सरकारी नौकरी सृजित करने के लिए जाने जाते हैं, सभी जातियों, वर्गों, संप्रदायों को बिना किसी भेद भाव के हिस्सेदारी देने के लिए जाने जाते हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए, दलितों के उत्थान के लिए, अगड़ी जातियों के सम्मान के लिए जाने जाते हैं। इन गुणों की वजह से नीतीश सबके हैं।
किन्तु नीतीश को हस्तिनापुर ले जाने के लिए सारथी की भूमिका यूपी के कुर्मी-कोयरी को ही निभानी होगी। यादव, मुसलमान, दलित, अति पिछड़ों का जोड़ तो है ही। यदि कुर्मी-कोयरी ने मोर्चा संभाल लिया तो मोदी गुजरात भेज दिए जायेंगे।
यूपी के कुर्मी-कोयरी समाज से 2024 का चुनाव राजनीतिक बलिदान मांग रहा है। इस बार सांसद नहीं प्रधानमंत्री चुनिए। किसान के बेटे को चुनिए.. इतिहास गवाह है सौदागर बिक जाते हैं किसान नहीं.. नीतीश किसान हैं, मोदी सौदागर हैं। नीतीश आपके हैं, मोदी ग़ैर हैं.. अदानी के हैं।
नीतीश कुमार के समर्थन में मोदी के मूकदर्शक सांसदों को हरा दीजिए.. चाहे वो किसी भी जाति का हो। 2024 प्रधानमंत्री चुनने का समय है, सरदार पटेल के हक में जो था, उसे हासिल करने का समय है।
इसलिए यूपी ही तय करें कि नीतीश बुद्ध की भूमि श्रावस्ती से लड़ें और भारत में शांति का संदेश दें या वाराणसी से आमने – सामने कर देख लें। नीतीश कुमार का नालंदा के अलावा यूपी से चुनाव लड़ना सही रणनीति होगा। क्योंकि अब यूपी 8 प्रधानमंत्री दे चुका है।
जाहिर है कि किसान जमात के लोग सीधे पूछेंगे कि ऐसा करने से क्या लाभ होगा। जवाब है कि जो वीपी सिंह ने किया.. नीतीश उस काम को आगे बढ़ाएंगे। सरकारी नौकरियों को वापस शुरु कराएंगे। अदानी – अंबानी को नियंत्रित कर आपकी जेब हल्की होने से बचायेंगे। खेत के किसानों की, फैक्ट्रियों के कामगारों की, मजदूरों, युवाओं की समस्याओं का निदान करेंगें। खत्म हो चुका आरक्षण वापस दिलायेंगे।
क्योंकि नीतीश समाजवादी हैं, सौदागर नहीं। समाजवादी उतना ही बोलते हैं जितना हो सके। इसलिए यूपी में सामाजिक स्तर पर राजनीतिक विमर्श की गतिविधियां शुरू करने का समय आ चुका है। प्रारंभिक चरण में माइक्रो लेवल पर बैठकी का आयोजन कर नीतीश कुमार को दिल्ली की गद्दी पर बैठाने के अभियान में सहयोग करिए क्योंकि बिहार अपनी भूमिका निभा चुका है, अब नीतीश यूपी के हवाले हैं।
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