केरल: आखिरकार वटावदा में दलितों को मिली एक ऐसी नाई की दुकान जहां से बाल कटवा सकेंगे

BY- FIRE TIMES TEAM

केरल के इडुक्की का एक गांव वटावदा में अधिकांंश लोगों के बीच जातिवाद इस कदर बसा हुआ हूं कि सालों से वहां के नाइयों ने अपने से नीची जाति के लोगों के बाल नहीं काटते थे।

आजादी के इतने सालों बाद, युवाओं, राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह द्वारा लंबे संघर्ष के बाद अब एक सार्वजनिक सैलून ने सभी जाति के लोगों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं।

कोविलूर में आयोजित एक समारोह में, देवीकुलम विधायक एस राजेंद्रन ने रविवार को वटावदा पंचायत अधिकारियों द्वारा सभी धर्मों और जातियों के लोगों के बाल काटने के लिए खोली गई सार्वजनिक नाई की दुकान का उद्घाटन किया।

एक बार चमड़े के निर्माताओं के रूप में अपने वंशानुगत व्यवसाय के कारण अछूत माने जाने वाले, वटावदा में चक्कलिया समुदाय के दलितों को उच्च जाति के पुरुषों द्वारा नाई की दुकानों तक पहुंच से वंचित कर दिया गया था।

इतना ही नहीं बल्कि, चाय की दुकान पर भी उनके लिए नारियल के खोल या अलग से कुल्लड़ की व्यवस्था कर दी गई थी जिसमें उन्हें चाय दी जाती थी।

यहां तक ​​कि दो-टंबलर प्रणाली (चाय की दुकान पे दलितों के लिए फेंकने वाले कप और उच्च जाति के लिए स्टील के कप) जैसी विचित्र प्रथाएं 1990 तक समाप्त हो गईं, लेकिन अब भी नाई की दुकानों में भेदभाव बरकरार है।

हाल ही में गाँव के कुछ दलित युवकों ने पंचायत अधिकारियों से भेदभाव के बारे में शिकायत करने का फैसला किया।

इस कदम के बावजूद, नाइयों ने यह कहकर इनकार कर दिया कि वे दलितों के बाल काटने से अच्छा तक अपनी दुकानें बंद करना पसंद करेंगें।

आखिरकार, पांच महीने पहले वटावदा में दो नाई की दुकानें पंचायत अधिकारियों द्वारा बंद कर दी गईं। गाँव के दलित पुरुष मुन्नार या एलापेट्टी के नजदीकी शहरों में सैलून में अपने बाल कटवाने जाते हैं।

यह जातिगत पूर्वाग्रह को खत्म करने के प्रयास में था कि पंचायत ने सार्वजनिक नाई की दुकान खोली, जहाँ अधिकारियों द्वारा नियुक्त प्रगतिशील सोच के साथ एक नाई सभी को सेवाएं देगा।

हालांकि, इस सैलून से उच्च जाति के पुरुष दूर रहेंगे या नहीं इस सवाल पर वट्टावदा पंचायत के अध्यक्ष रामराज ने कहा कि वे खुद उच्च जाति के लोगों को सैलून में बाल कटवाने जाएंगे ताकि यह दूसरों के अनुकरण के लिए एक मॉडल बन जाए।

उन्होंने कहा, “पंचायत विभिन्न समुदाय-आधारित कार्यक्रमों का भी आयोजन कर रही है, जहाँ उच्च जाति और दलितों को एक साथ पीने और खाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और साथ में अध्ययन करने के लिए बैठते हैं। यह एक धीमी प्रक्रिया है और हम समाज की सोच को बदलने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं।”

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