देश में जवानों की शहादत को लेकर अजीब माहौल बनता जा रहा है। अब जब तक 20-25 सेना के जवान एक साथ शहीद नहीं होते तब तक मीडिया और देश की जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता।
बकरीद के मौके पर राजस्थान के झुंझुनू जिले के रहने वाले 22 वर्षीय मोहसिन खान पेट्रोलिंग के दौरान शहीद हो गए। यह खबर न तो मुख्यधारा की मीडिया में चर्चा का विषय बनी और न ही अगले दिन निकलने वाले अखबारों की सुर्खियों में दिखी।
मोहसिन के शहीद होने की खबर सिर्फ सोशल मीडिया तक रह गई। न तो किसी बड़े नेता ने ट्वीट किया न तो किसी ने एक के बदले 10 सिर लाने की बात कही। सब अपनी जिंदगी में मशगूल थे, कोई बकरीद को लेकर तो कोई रक्षा बंधन को लेकर।
लेकिन आपको बता दूं कि मोहसिन खान के गांव कोलेन्डा में इस बार बकरीद नहीं मनाई गई। पूरे गांव की आंखे नम थीं जिनमें सभी समुदाय के लोग शामिल थे।
मोहसिन खान के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने महज 19 साल की उम्र में सेना ज्वाइन की थी और 22 साल की उम्र में देश के लिए कुर्बान हो गए। 1 अगस्त को जब लोग कुर्बानी कर रहे थे तब उसी दिन मोहसिन को अंतिम विदाई दी गई।
गांव की महिलाओं ने शहीद मोहसिन की अंतिम यात्रा में अपनी-अपनी छतों से फूल बरसाए। सभी की आंखे नम थी लेकिन अपने गांव के बेटे पर गर्व भी महसूस कर रही थीं।
मोहसिन के परिवार में कई लोग सेना में हैं। उनके पिता सरवर खान भी सेना में थे और वह सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हुए थे। भाई अमजद अली 14 ग्रेनेडियर में हैं। चाचा के साथ-साथ उनके ताऊ भी सेना में सेवाएं दे चुके हैं।
मोहसिन खान एक महीने पहले ही ड्यूटी पर वापस लौटे थे। उनके परिवार वालों ने बताया कि अभी हाल ही में उनकी शगाई हुई थी और जल्द ही शादी होती।