अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2019 से ही कच्चे तेल के दाम में गिरावट देखने को मिल रही है। 2020 आते-आते कच्चे तेल के दाम में रिकॉर्ड स्तर पर कमी देखने को मिली। कच्चे तेल के दाम में भले ही कमी आई हो लेकिन भारत सरकार ने देश में पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले कर को बढ़ा कर इसका फायदा जनता को नहीं दिया।
जो कच्चा तेल दिसंबर 2019 में 65.5 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से मिल रहा था वह अप्रैल 2020 में 19.9 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से मिलने लगा। इसके अगले महीने मई में ही सरकार ने पेट्रोल पर 10 रुपए और डीजल पर 13 रूपए एक्साइज ड्यूटी बढ़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि आम जनता को जो सस्ता तेल मिलना चाहिए था वह नहीं मिला।
वर्तमान में भारत दुनिया का ऐसा देश है जहां पेट्रोल-डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स लगता है। भारत पेट्रोलियम पर सबसे ज्यादा 69 प्रतिशत टैक्स लेता है।
ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस के मुताबिक बढ़े हुए टैक्स के कारण सरकार और कंपनियों को बढ़े हुए टैक्स के कारण 730 करोड़ रुपए की अतिरिक्त कमाई हो रही है। इस आंकड़े को साल में जोड़कर देखा जाए तो यह 2.25 लाख करोड़ पहुंच रहा है। यह कोई छोटी-मोटी रकम नहीं है। कई छोटे देशों की जीडीपी भी इस रकम से कम है।
ऐसे में यदि सरकार इस पैसे को सही रूप में इस्तेमाल करती है तो इससे देश की हालत सुधारने में काफी कुछ सहयोग मिलेगा। कोरोना संकट के बीच जब देश की अर्थव्यवस्था चौपट है तब यह भारत के लिए एक संजीवनी बूटी की तरह है।
वर्तमान में सरकार जहां पेट्रोल पर 32.98 रुपए प्रति लीटर तो वहीं डीजल पर 31.83 रुपए टैक्स के रूप में वसूल रही है। पिछले वित्त वर्ष में केंद्र और राज्य सरकारों को पेट्रोलियम सेक्टर से कुल मिलाकर 5.5 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिला था।
इस बार यदि इसमें 2.25 लाख करोड़ और जोड़ दें तो यह आंकड़ा करीब 8 लाख करोड़ के आस-पास पहुंच जाता है।