BY-FIRE TIMES TEAM
कोरोना महामारी का मुकाबला करने के लिए चल रहे लॉकडाउन के दौरान लगभग दो-तिहाई या 67 प्रतिशत श्रमिकों ने रोजगार खो दिया। भारत के शहरी क्षेत्रों में 10 में से 8 श्रमिकों का रोजगार छिन गया तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 10 में 6 श्रमिकों का।
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय ने 10 नागरिक समाज संगठनों के सहयोग से यह सर्वे कराया है जिसमें 4000 लोगों को शामिल किया गया है।
यह सर्वेक्षण आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र (पुणे), ओडिशा, राजस्थान, तेलंगाना, और पश्चिम बंगाल में रोजगार, आजीविका और सरकार तक पहुंच के लॉकडाउन के प्रभाव का पता लगाने के लिए किया गया था।
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक इसको लेकर खबर के अनुसार शहरी क्षेत्रों में स्वरोजगार के लिए रोजगार का नुकसान सबसे खराब था जिनमें से 84 प्रतिशत ने रोजगार खो दिया। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 66 प्रतिशत आकस्मिक वेतन श्रमिकों ने रोजगार के नुकसान की सूचना दी। इसके बाद 62 प्रतिशत वेतनभोगी श्रमिकों और 47 प्रतिशत ग्रामीण श्रमिकों ने काम किया।
इस सर्वे में बताया गया कि सभी वेतनभोगी कर्मचारियों में से आधे अथवा 51 प्रतिशत ने या तो अपने वेतन में कटौती देखी या कोई वेतन नहीं लिया।
लगभग आधे (49 प्रतिशत) परिवारों ने बताया कि उनके पास एक सप्ताह के लिए आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिए पर्याप्त धन नहीं था।
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जबकि 80 प्रतिशत शहरी परिवारों और 70 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में पहले की तुलना में कम भोजन लेने की सूचना थी। सर्वेक्षण के अनुसार, शहरी भारत में एक-तिहाई या 36 प्रतिशत से अधिक असुरक्षित परिवारों को सरकार से कम से कम एक नकद हस्तांतरण प्राप्त हुआ। वहीं दूसरी ओर 53 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को यह लाभ मिला। इसका मतलब ग्रामीण भारत में सरकारी सहायता का लाभ ज्यादा लोंगो तक पहुंचा।
मोदी सरकार के बीस लाख करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता से इन लोगों को कितना लाभ मिल पाएगा यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन अभी इनको सरकारी सहायता की शख्त जरूरत है।