अभी हाल ही में आरबीआई ने कहा है कि अगले साल मार्च में एनपीए 12.5 प्रतिशत हो सकता है। यही नहीं उसने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया है कि यदि आर्थिक स्थिति और बिगड़ी तो यह 14 प्रतिशत से भी ऊपर जा सकता है।
अब आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर ने भी मोदी सरकार को एनपीए के लिए जिम्मेदार बताया है। पूर्व डिप्टी गवर्नर ने कहा कि सरकार चाहती थी कि डिफॉल्टर के प्रति नरम रुख अख्तियार किया जाए।
दरअसल विरल आचार्य ने अपनी एक नई किताब में देश की अर्थव्यवस्था और सरकार की नीतियों को जोड़ते हुए बहुत कुछ लिखा है। इस किताब में उन्होंने लिखा है कि मोदी सरकार चाहती थी की रिजर्व बैंक लोन ना चुका पाने वालों के प्रति नरम रुख अख्तियार करे। इतना ही नहीं सरकार चाहती थी कि बैंकों की तरफ से कर्ज देने के नियमों में ढील दी जाए।
विरल आचार्य ने आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे को लेकर भी खुलासा किया है। पूर्व गवर्नर के इस्तीफे के पीछे की वजह मोदी सरकार द्वारा आरबीआई पर अंकुश लगाना था। यही कारण था कि पूर्व गवर्नर ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया।
आपको बता दूं कि उर्जित पटेल को आरबीआई का आरबीआई का गवर्नर बनाये जाने के बाद सितंबर 2016 में विरल आचार्य को डिप्टी गवर्नर बनाया गया था।
विरल आचार्य का कार्यकाल तीन साल तक के लिए था लेकिन उन्होंने 6 महीने पहले ही जुलाई 2019 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उस समय उनके इस्तीफे को निजी कारण के रूप में लिया गया था लेकिन सरकार से उनके टकराव किसी से छिपे नहीं थे।
सरकार से विरल आचार्य के कई बार टकराव हुए। कई बार ब्याज दरों की कटौती को लेकर भी वह मोदी सरकार से भिड़ गए थे। उन्होंने कहा था कि जो सरकार केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का सम्मान नहीं करती वह अर्थव्यवस्था की बदहाली को बढ़ावा देती है।
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