BY- PRIYANSHU
यूपी-बिहार में चुनाव लड़ने के लिए जातीय समीकरण जोड़िए, फिर जाति का नेतृत्व करने वाली पार्टियों से गठबंधन कीजिए, उन्हें मुंह मांगी सीट दीजिए, राज्यसभा और एमएलसी का लोभ दीजिए, उनके नेताओं को मंत्री पद दीजिए..! सत्ता तक पहुंचने के लिए यही सरल माध्यम है, इसमें चमत्कार का कोई उपाय नहीं होता, गठबंधन का नाम देकर लंबे समय से इसे फॉलो किया जा रहा है।
दूसरा साधन राष्ट्रवाद है और तीसरा समाजवाद। राष्ट्रवाद छद्म है, इसका भीतरी सतह घिनौना है, इसका वजूद लाशों के ढेर पर टिका है। समाजवाद खूबसूरत है। नेहरू, शास्त्री, इन्दिरा से लेकर लालू, मुलायम, नीतीश तक… समाजवाद में असहमतियां है, जवाबदेही है, हिस्सेदारी है, जिम्मेदारी है। यहां सैकडों नायक हैं, नायकों में से एक महानायक बनता है।
यहां चड्डी में शाखा नहीं जाना होता, धर्म की राजनीति नहीं होती, हिंदू इन डेंजर बताकर कोई वोट नहीं मांगता। यहां सामंतवाद की कब्र खोदी जाती है, ब्राह्मणवाद का पाखंड मिटाया जाता है। सब आहिस्ते होता है, क्रांति होती है- चुप चाप होती है, कोई शोर नहीं मचाता, ढिंढोरा पीटने की परंपरा नहीं है।
अखिलेश अपने काम का प्रचार नहीं कर पाते, नीतीश काम करके भी अपनी ज़मीन खोते जा रहे, राहुल अपनी सरकारों का एग्जिबिशन नहीं करा पा रहें। लेकिन एक उम्मीद है, जो समय के साथ जवान हो रही है, उम्मीद मरणशील नहीं है।
समाजवाद उसी उम्मीद का नाम है। लालू का समाजवाद उदाहरण है। इसे बेंचमार्क मान कर समझिए। लालू बड़े नेता बनें, उनकी बुलंद आवाज को जनता ने खूब प्यार दिया, मसीहा घोषित हुए… उन्होंने इसका श्रेय खुद नहीं लिया, इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में अपनी वाहवाही के बजाए क्षेत्रीय नेताओं को मजबूत किया।
लालू प्रसाद यादव स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स, वर्तमन के समाजवाद का सुनहरा अतीत है। यहां वैशाली में रघुवंश बाबू दिखते हैं, सीमांचल में तस्लीमुद्दीन, चम्पारण में सीताराम सिंह और मोतिउर रहमान साहब दिखते हैं। सीवान-गोपालगंज में शहाबुद्दीन, शिवहर में अनवारूल, मिथिला में फातमी और अब्दुल बारी सिद्दीकी दिखते हैं।
पटना में रामकृपाल, मुजफ्फरपुर में रमई राम, समस्तीपुर में आलोक मेहता और आरा-बक्सर में जगदानंद सिंह दिखते हैं। पत्थर तोड़ने वाली भगवतिया देवी गया से संसद भेजी जाती है। रामविलास चुनाव हारते हैं, उन्हें राज्यसभा भेज दिया जाता है। ये सभी संयोग नहीं थे, वैकल्पिक प्रयोग थे।
इनमें सभी धुरंधर थे, धुरंधरों के नेता लालू प्रसाद यादव थे। चुनावी राजनीति में खुद के हांथ मजबूत हो तो झुकने की जरूरत नहीं होती। मजबूत और स्थिर सरकार के लिऐ ये एकमात्र मूल मंत्र है। तेजस्वी, अखिलेश और राहुल को राजनीति सीखने के लिए लालू से बेहतर विकल्प वर्तमान में मौजूद नहीं है।
तबियत से लालू जी को पढ़िए…संगठन मजबूत किजिए, खुद को पोस्टर बॉय बनाने की बजाए मास लीडर बनने की ओर कदम बढ़ाइए। अपने क्षेत्रीय नेताओं को आगे कीजिए, उन्हें मौका दीजिए। छोटे कार्यकर्ताओं पर भरोसा कीजिए, उन्हें समय देकर बड़ा नेता बनाइए। उन्हें नायक बनाइए, जनता आपको महानायक बना देगी। लालू यादव महानायक का नाम है।
यह भी पढ़ें- लालू-ललुआ हो जाते है, किसी ने राजनाथ सिंह को राजनाथवा, जगदानंद सिंह को जगदवा क्यों नहीं कहा?
यह भी पढ़ें- द कश्मीर फाइल्स रिव्यु: कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का ही पलायन हुआ बाकी हिंदुओं का नहीं, आखिर क्यों?