अगर कोई न्यायाधीश फैसला करके आसाराम और तमाम दूसरे बाबाओं को रिहा करने का आदेश दे दे?

 BY- संध्या शैली 

क्या पता कि एक दिन उत्तर प्रदेश की कोई अदालत हापुड की छः साल की बच्ची का बर्बर बलात्कार करने वालों को यह आदेश दे दे कि उन्हे उसे गोद लेना है और उसका अपनी बेटी की तरह से पालनपोषण करना है।

इंदौर हाइकोर्ट के निर्णय को नज़ीर मानते हुये क्या पता कि देश भर में यही ट्रेंड चल पड़े। या फिर यदि बलात्कार करने वाले मुस्लिम या दलित हुये, तो क्या पता कि हैदराबाद पुलिस की तरह से उन्हें सडक पर ही ठिकाने लगा दिया जाये और तथाकथित जनता के द्वारा उनका सम्मान भी करवा दिया जाये।

विष्णु नागर जी का एक आलेख अभी कहीं पर पढने में आया। वे कहते हें कि यह देश एक पागलखाने में बदलता जा रहा है। यह सही है, लेकिन साथ ही अर्धसत्य है। पूरा सच यह है कि इस देश को जानबूझ कर पागलखाने मेें तब्दील किया जा रहा हैं।

इसलिये कि ये सारे कारनामें जो प्रशासन, पुलिस और न्यायपालिका के द्वारा शासक वर्ग करवा रहा है, वह इस देश के आधार और संविधान की अवधारणा को धीरे-धीरे खत्म करने की साजिश के तहत है।

इंदौर हाइकोर्ट के फैसले के बारे में एक मध्यमवर्गीय हिंदू की त्वरित प्रतिक्रिया थी कि ऐसा ही होना चाहिये। ऐसी प्रतिक्रियाएं अपने आप नहीं आती, इन्हे पाल पोस कर बड़ा किया जाता है।

आसाराम, रामदेव, श्री श्री इस देश के मध्यमवर्गियों में ऐसे ही लोकप्रिय नहीं है। हो सकता है कि एक दिन सर्वोच्च न्यायालय में सेवानिवृत्त होने की कगार पर बैठा कोई न्यायाधीश फैसला करके आसाराम और तमाम दूसरे बाबाओं को रिहा करने का आदेश दे दे और कहे कि निचली अदालतों के फैसले सिर्फ एक-दो औरतों के बयान को आधार बनाकर ले लिए गए हैं, इसमें करोड़ों लोगों की आस्था क्या ध्यान नहीं रखा गया है।

कमला हैरिस की उम्मीदवारी पर खुश होने वाले इस देश के मध्यमवर्गीय अपने देश में अपने जैसे ही दिखने वाले, अपने ही धर्म को मानने वाले दलित हिंदुओं के प्रति घृणा को जस्टिफाई भी करते हुये दिखाई दे सकते हैं।

वे यह जानबूझ कर याद रखना नहीं चाहते कि कमला हैरिस की उम्मीदवारी उस देश की बहु सांस्कृतिक, बहु नस्लीय आबादी की मजबूती का सबूत है। जब कमला हैरिस यह कहती हैं कि अमरीका में काले लोगों के साथ आज भी अन्याय हो रहा है, तो उन्हे देशद्रोही कहकर ट्रंप सरकार जेल में नहीं भेजती है।

हमारे यहां पर तो अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार उदय प्रकाश जब रेत माफिया को रेत की तस्करी करने से रोकते है, तो उन्हे जान से मारने की धमकी दी जाती है और उसके ऊपर तुर्रा ये कि जब वे पुलिस में शिकायत दर्ज करते हैं, तो रेत तस्करी की पूरी जानकारी और उसमें लिप्त लोगों के बारे मे भी जानकारी होने के बावजूद पुलिस रेत तस्करों के द्वारा श्री उदयप्रकाश के खिलाफ दिये गये आवेदन को भी एफआईआर के रूप में दर्ज कर लेती है।

यह सब पागलपन नहीं, जानबूझ कर इस देश को बर्बाद करने की ओर उठाये जाने वाले कदमों के नतीजे हैं। कोरोना से बेहाल होते इस देश में अब आरएसएस के द्वारा यह प्रचार करना कि यह कोई महामारी नहीं, सामान्य फ्लू है, सरकार की जिम्मेदारी से जनता का ध्यान हटाने की सायास की जाने वाली जानलेवा कोशिश है।

पिछली साल 5 अगस्त को जब धारा 370 हटाई गयी थी, तब इस देश के संवैधानिक आधार को दरकाने वाला एक कदम उठाया गया था और अब इस 5 अगस्त को अयोध्या में मंदिर के काम की शुरूवात करना इन दरारों को और चौड़ा करने वाला काम है।

ये काम इस देश के लोगों मेे पागलपन को बढ़ाने, आज़ादी के आंदोलन के नायकों के प्रति घृणा को बढ़ाकर अंततः इस देश को प्रतिक्रियावादी संघ परिवार के हाथों में सौंपने के काम की भी शुरूवात है। इसका मुकाबला क्या दूसरे मंदिर खडे करके किया जायेगा? यह भी उसी पागलपन को हवा देने वाला होगा।

अरूंधती राॅय ने डॉ. अंबेडकर की “जाति का निर्मूलन” की पुस्तक के विश्लेषण के दौरान लिखी अपनी टिप्पणी में लिखा था कि मलाला यूसुफ जयी को अमरीकी प्रशासन, यूरोपीय देश सहायता करते हैं, उसे नोबल पुरस्कार दिया जाता है, आदि।

लेकिन हमारे देश के किसी दलित पर सवर्णों का हमला होता हेेै, उसे मार डाला जाता हेै, उसकी बेटियों के साथ बलात्कार होता है तो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का प्रत्युत्तर वैसा नहीं होता, जैसा मलाला के संबंध में होता है।

यह इसलिये है, क्योंकि यह देश उनके यहां की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये एक बड़ा बाज़ार है, जो पाकिस्तान नहीं हेै। इस देश की घटनाओं के बारे में बोलने से उनके आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचेगा।

इसलिये इस देश की गरीब, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक जनता, महिलायें, बच्चे चाहे किसी भी तरह की अमानवीय जिंदगी जीयें, उनका बाज़ार सुरक्षित रहे। इस देश के संविधान से उन्हें भी नुकसान है, इसलिये इसे खत्म करने की साजिश में वे भी बराबरी से शामिल हैं।

कुल मिलाकर देश की परंपराओं के नाम पर पागलपन फैलाने वाली प्रतिक्रियावादी ताकतें जो पूंजीपतियों की पूंजी का सहारा लेकर बढ़ रही हैं, इस देश की असली परंपरा ‘‘वादे वादे जायते तत्वबोधः” के वाहकों को देशद्रोही करार देकर जेल पहुंचा रही है और धीरे धीरे पूरे देश को कश्मीर बनाने वालीं हैं।

क्या बेरूत के धमाके के बाद सड़कों पर उतरे युवाओं ने जिस तरह से वहां की पूरी सरकार को इस्तीफा देने के लिये बाध्य कर दिया, वैसे हमारे यहां पर कुछ होगा या यह पागलपन पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लेगा? एक बड़ा सवाल है।

लेखिका जनवादी महिला समिति की मप्र राज्य उपाध्यक्ष और केंद्रीय कार्यकारिणी की सदस्य हैं।

लेख में दिए गए विचार लेखिका के स्वयं के हैं। फायर टाइम्स की टीम निजी विचारों के प्रति जिम्मेदार नहीं है।

About Admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *