BY- BIPUL KUMAR
“ये संयोग नहीं है की 11 सबसे गरीब जिलों में सबके सब मिथिला क्षेत्र से हैं। हम जब मिथिला राज्य मांगते हैं तो टंटपूंजिया मगधराकस यूट्यूबर सब गाली देता है मैथिलों को लेकिन इसपे जवाब किसी के पास नहीं है। क्यों सबसे गरीब हमहीं हैं, क्या हम हमेशा से गरीब थे ? नहीं। हम तो सबसे इंडस्ट्रियलाइज्ड क्षेत्र थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हम देश का 30% चीनी, 32% जुट, 23% कागज, 19% सूत, 16% खाद, 23% मछली, 14% चावल, 80% मखाना उत्पादन करने वाले क्षेत्र थे। तुमने हमारे सभी मिलों को बंद करवा दिया, हमें मजदूर सप्लाई जोन बनाकर छोड़ दिया। अब और नहीं…लड़कर लेंगे मिथिला राज्य” मिथिला छात्र संघ के अध्यक्ष अनुप मैथिली मीडिया को बताते है।
“मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक जाति और एक क्षेत्र के मुख्यमंत्री बनकर रह गए हैं। राजगीर और नालंदा घुमाइए फिर मिथिलांचल आइए आपको नीतीश कुमार के क्षेत्रवाद विचार की असली बू नजर आ जाएगी। इस देश में भाषा को लेकर पहले भी राज्य की मांग की जा चुकी है और बनी भी है। हम लोग भी अलग भाषा और अलग संस्कृति को लेकर अपना एक अलग राज्य चाहते हैं। ताकि हमारे लोग भी विकास देख सकें। मिथिलांचल के सर्वांगीण विकास के लिए पृथक मिथिला राज्य का गठन बहुत जरूरी है। ” मिथिलावादी पार्टी के इंजीनियर शरत झा बताते है।
आंदोलन की क्या वजह बनीं?
“बी. एन. मंडल यूनिवर्सिटी हो या पूर्णिया यूनिवर्सिटी 5 वर्ष लगाता है स्नातक पूर्ण करने में। किशनगंज का ए एन एम यू अभी तक पूरा नहीं हुआ है। भागलपुर का ऐतिहासिक विश्वविद्यालय की पढ़ाई शुन्य हो गई हैं। विद्वानों की धरती कहे जाने वाली मिथिला अभी अच्छी पढ़ाई के लिए भी तरस रहा है। आखिर कब तक? मिथिला सिर्फ शब्द या नाम नहीं एक भावना है। भाषा व संस्कृति है। 7 करोड़ से अधिक लोगों का अस्तित्व, आत्मबल है।” अंतर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ महेंद्र राम बताते है।
मगध जैसा विकास मिथिला में क्यों नहीं?
“मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मगध को तो विकास का प्रतीक बना डाला है वही मिथिला को रूकतापुर। नालांद में ग्लास ब्रिज के लिए सरकार के पास फंड की कोई कमी नही है दूसरी और मिथिला के लिए चचरी पुल पर भी संकट है। देश का सबसे पहला विश्वविद्यालय विक्रमशिला अभी भी खंडहर बना हुआ है और मगध का नालंदा विश्वविद्यालय अपने अतीत की ओर वापस लौट रहा है। क्षेत्र के नाम पर विकास का मापदंड गलत है। मैथिलों का सम्मान व स्वाभिमान दोनो जाग गया है। जिस दिन मिथिला राज्य बन गया उसके 5 साल के बाद कोई मैथिल कम से कम मजदूरी करने तो आपके प्रदेश में नही जाएगा। हम अपनी खोई हुई संस्कृति वापस लौटाएंगे” भूपेंद्र मंडल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव सचिद्र महतो बताते है।
मिथिला प्रदेश एक जाति की मांग
इंडिया टुडे के पूर्व संपादक प्रोफेसर दिलीप मंडल सोशल मीडिया पर मिथिला राज्य के बारे में लिखते हैं कि मैं झा लोगों द्वारा अलग मिथिला राज्य माँगे जाने का समर्थन करता हूँ। भारत सरकार मैथिल ब्राह्मणों की इस पर विचार करे।
वहीं मिथिला छात्र संघ के एक और पूर्व सदस्य रह चुके कृष्णा लिखते हैं कि, “मिथिला राज्य की मांग ब्राह्मणों की मांग है। सारे मिथिलावासी इस से सहमत नहीं हैं, कुछ संगठन को छोड़ कर। 1990 के बाद से एक ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाने के लिए अलग मिथिला राज्य की माँग कर रहे है।”
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