BY- MUKUL SARAL
आज मैं और पत्नी ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ फ़िल्म देखकर आए। फ़िल्म ख़त्म होने के बाद सिनेमाघर से बाहर निकले तो देखा माहौल कुछ गर्मा रहा है। देखा कि कुछ लोग जमा होकर अचानक नेहरू- गांधी मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे। थोड़ी देर में ही वंदे मातरम की नारेबाज़ी शुरू हो गई। पत्नी घबराई, पूछा मॉल में ये क्या होने लगा है। अब तो चुनाव भी ख़त्म हो गए। मैं समझ गया था कि हमारे साथ ही ‘कश्मीर फाइल्स’ का भी शो छुटा है।
शुरू में टिकट विंडो पर भी काफ़ी गहमा गहमी थी। हाउस फूल शो था। मैंने बताया कि ये लोग कश्मीर फ़िल्म देखकर उत्तेजित हैं। उन्होंने पूछा क्या है फ़िल्म में। मैंने कहा पता नहीं। लेकिन पूरा सच तो नहीं होगा। तभी ये लोग नेहरू गांधी को गरिया रहे हैं। जबकि गांधी नेहरू की वजह से ही कश्मीर आज भारत का हिस्सा है। और ये लोग शायद सं 90 में कश्मीरी पंडितों के कश्मीर से पलायन को लेकर इतना गुस्सा है तो इन्हें जानना चाहिए कि जो बीजेपी कश्मीरी पंडितों की इतनी पैरोकार बनती है, तो उनका पलायन उस समय हुआ था जब केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बीजेपी के समर्थन से चल रही थी।
कश्मीर में राज्यपाल शासन था और राज्यपाल बीजेपी के प्रिय जगमोहन थे। अब इसके लिए उनसे जवाब न मांग कर नेहरू गांधी से हिसाब मांगा जा रहा है। और जवाब तो बीजेपी और मोदी से भी मांगना चाहिए कि इन आठ सालों में उन्होंने कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए क्या किया। सिवाए चुपचाप अनुच्छेद 370 ख़त्म करने के। मज़ेदार है कि 370 ख़त्म करते हुए जुमला उछाला गया कि शेष भारत के लोग भी वहां प्लॉट खरीद लेंगे लेकिन इनके शासन काल में तो लोगों के यूपी दिल्ली के प्लाट क्या फ्लैट बिकने की नौबत ज़रूर आ गई है।
मैंने कहा भीड़ देखकर लगता है जैसे लोगों को बाकायदा जुटाकर फ़िल्म दिखाने लाया गया है। और ये नारे लगाने वाले भी भाजपाई लग रहे हैं। और मेरा शक़ सही निकला, बाहर निकला तो मैंने कई गाड़ियां बीजेपी का झंडा लगी देखीं।
ख़ैर अगर किसी को कश्मीर का सच जानना हो तो कई अच्छी किताबें हैं। ख़ासकर अशोक कुमार पांडेय की ही कश्मीर और कश्मीरी पंडित पढ़ लेंगे तो कई गलतफहमियां दूर हो जाएंगी। लेकिन ये तभी हो सकता है जब आप सच जानने के इच्छुक हों। वरना ऐसे ही प्रोपेगैंडा से काम चलाइए।
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