डॉ.अंबेडकर का योगदान केवल संविधान निर्माण तक ही सीमित नहीं था !


BY- सलमान अली


प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को देशभर में स्वतंत्रता संघर्ष के प्रमुख नायक, शिल्पकार और स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माता डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर की जयंती बड़े ही हर्षोल्लास के साथ आयोजित की जाती है।

इस आयोजन के पीछे का प्रमुख उद्देश्य भारतीय युवाओं को उन विचारों से अवगत कराना है जिन्होंने भारत के लोकतंत्र को संविधान रूपी लोकतंत्र के रूप में स्थापित किया था।

यदि आप भारत के लोगों से अंबेडकर जी के बारे में बात करें तो पाएंगे कि वह संविधान निर्माता तक ही सीमित हैं। ज्यादातर लोग अंबेडकर के सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर किए गए अमूल्य योगदान को जानते ही नहीं हैं।

उनको पता ही नहीं इस समाज में निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति को सामाजिक स्तर पर बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए अंबेडकर ने कितना संघर्ष किया? राजनीतिक स्तर पर दलित और शोषित व महिलाओं को बराबरी का दर्जा प्रदान करने हेतु विधि का निर्माण कर उसे संहिताबद्ध भी किया?

अम्बेडकर जी ने समाज में व्याप्त छुआछूत के विरुद्ध संगठित प्रयास करते हुए वर्ष 1924 में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। इस सभा का प्रमुख उद्देश्य शिक्षा और सामाजिक, आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने के साथ ही अछूत वर्ग के कल्याण की दिशा में कार्य करना भी था।

समाज में निचले स्तर पर खड़े दलित वर्ग के अधिकारों की रक्षा के लिए मूलनायक, बहिष्कृत भारत, समता, प्रबुद्ध भारत और जनता जैसी प्रभावशाली पत्रिकाएं निकालकर एक जबरदस्त लेखनी का उदाहरण पेश किया।

1 जनवरी 1818 हो जब द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध के दौरान भीमा कोरेगांव की लड़ाई हुई तो उस समय मारे गए भारतीय महार सैनिकों के सम्मान में अंबेडकर जी ने 1 जनवरी 1927 को कोरेगांव विजय स्मारक पर एक समारोह आयोजित किया।

इस स्थान पर महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाए गए तथा पूरे गांव को दलित स्वाभिमान का प्रतीक बना दिया गया जहां आज भी हजारों लोग इकट्ठा होते हैं।

1927 में ही अंबेडकर जी ने छुआछूत के विरुद्ध व्यापक आंदोलन शुरू किया। पेयजल स्रोतों पर समाज के सभी वर्गों के अधिकार की बात उन्होंने सामाजिक आंदोलनों, सत्याग्रह और जलूसों के माध्यम से की।  इसी साल अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने के अधिकार को लेकर संघर्ष किया।

20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के महाड़ नामक स्थान पर दलितों को सार्वजनिक तालाब से पानी पीने और उसे उपयोग करने के अधिकार को लेकर सत्याग्रह किया जिसे महाड़ सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। सत्याग्रह के दौरान कुछ लोगों पर हमला भी हो गया था जिससे गंभीर चोटे भी आई थी।

इसके बाद 25 दिसंबर 1927 को अंबेडकर ने हजारों अनुयायियों के साथ मिलकर मनुस्मृति की प्रतियों को जला देने का अत्यंत गंभीर कार्य किया था।

डॉ अंबेडकर अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर काफी चिंतित थे। उनका मानना था कि अल्पसंख्यक समुदायों का सरकार के विभिन्न अंगों में प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

उनके अनुसार इस समुदाय के लोगों को अपना प्रतिनिधित्व स्वयं करना चाहिए क्योंकि सिर्फ मुद्दे का रखा जाना मायने नहीं रखता बल्कि उस मुद्दे का प्रतिनिधित्व स्वयं करना मायने रखता है।

अंबेडकर ने भारत की ग्रामीण आबादी जो कि मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर थी, के लिए काफी बड़ा प्रयास किया।  भारत में कृषि की जमीनों पर जमींदारों और कुछ उच्च जातियों का कब्जा था। ज्यादातर जातियां भूमिहीन और मजदूरी का कार्य करती थीं।  अंबेडकर इन्हीं भूमिहीन जातियों के लिए भूमि सुधार लागू कर सहकारी खेती कराए जाने के पक्ष में थे परंतु राजनीतिक कारण के बाद इसे लागू नहीं किया जा सका था।

अंबेडकर ने जजमानी प्रथा को रोकने के लिए सेपरेट सेटलमेंट की मांग की। दरअसल जजमानी प्रथा में एक जाति दूसरी जाति पर निर्भर होती थी इस निर्भरता की वजह से सवर्ण जातियां दलित जातियों का विभिन्न प्रकार से शोषण करती थीं।

अंबेडकर यह भली-भांति जानते थे कि सरकार की कुछ सीमाएं हैं इस कारण वह एक व्यापक स्तर पर शोषित जातियों के लिए ही कार्य नहीं कर पाएगी। समाज के नौकरी पेशा लोगों से कहा गया कि वह शोषितों और वंचितों को ऊपर उठाने के लिए आर्थिक रूप से मदद करें जिसे पेबैक टू सोसाइटी कहा गया।

24 सितंबर 1932 को डॉ अंबेडकर ने पूना समझौता के माध्यम से समाज के दलित वर्ग के लिए एक बहुत ही बड़ा काम किया।  यह मुख्य रूप से दलित वर्ग के आरक्षण से संबंधित था जिसका लाभ लेकर वह समाज के मुख्यधारा के लोगों के साथ मिल सकें।

परंतु आगे चलकर पुणे समझौते ने दलितों को राजनीतिक हथियार बना दिया। संयुक्त निर्वाचन में वास्तविक दलितों को हराकर हिंदू जाति के संगठनों का एजेंट बना दिया और केवल उन दलितों की चुनाव जीत को पक्का किया जो इन संगठनों के एजेंट या हथियार थे।

इस प्रकार आप देखेंगे तो पाएंगे कि संविधान निर्माण के बहुत पहले ही अंबेडकर ने सामाजिक और राजनीतिक रूप से उत्कृष्ट कार्य किए हैं।

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