BY- RAHUL KUMAR GAURAV
बिहार राज्य में अगर मुख्यमंत्रियों की जिक्र होगी तो अग्रिम लिस्ट में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार का नाम आएगा। हालांकि इन दोनों की राजनीतिक सफलता और असफलताओं के बीच का रास्ता बेहद संघर्षशील रहा। हम आपको लालू और नीतीश की राजनीति के चंद बारीकी अंतर को बताएंगे।
नीतीश कुमार ने शरद यादव, जॉर्ज फर्नांडीज और दिग्विजय सिंह जैसे लोगों को जीवन के अंतिम समय में बेघर कर दिया। 2017 में महागठबंधन से अलग होने के फैसले का विरोध करने पर शरद यादव और अली अनवर की राज्यसभा की सदस्यता तक ख़त्म करवा दी। जॉर्ज फर्नांडीज और दिग्विजय सिंह जीवन के अंतिम चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़े। यह शरद यादव जॉर्ज और दिग्विजय सिंह नहीं होते तो नीतीश कुमार एक सांसद से ज़्यादा शायद ही बन पाते।
लालू यादव को जेल पहुंचाने वाले शिवानंद तिवारी रिटायमेंट की उम्र में राजद में हैं पुत्र विधायक भी हैं। 2014 में पप्पू यादव राजद के सिम्बल पर जीतने के बाद 2019 तक पूरे 5 साल लालू यादव को गरियाते रहे लेकिन राजद ने एक बार भी पप्पू यादव की सदस्यता ख़त्म करवाने की कोशिश भी नहीं की। 3 दशक तक लालू यादव विरोध की राजनीति करने वाले शरद यादव अब जब बिना सहारे के दो क़दम चल भी नहीं सकते तब आज उन्हें शरण मिली है लालू यादव की पार्टी में। शायद राज्यसभा भी जाएंगे और बेटी भी भविष्य में चुनाव लड़ेंगी।
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