अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या के बाद न्याय दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर कंपेन चलाने वालों में अभिनेत्री कंगना रणौत और बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय का नाम सबसे आगे लिया जाएगा।
अब कंगना को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिल चुकी है, उनकी माता जी बीजेपी में शामिल हो चुकी हैं। गुप्तेश्वर पांडेय जदयू में शामिल होकर नीतीश कुमार के साथ बिहार में चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
कई संबंध हैं जिसको जानकार आप भी कह सकते हैं कि अभिनेत्री कंगना और गुप्तेश्वर पांडेय द्वारा न्याय दिलाने की बात कहना महज एक दिखावा था। इसमें सिर्फ अपना लाभ देखा जा रहा था जो कुछ ही दिनों में मिल भी गया।
जिस प्रकार से गुप्तेश्वर पांडेय द्वारा राजनीतिक बयानबाजी की जा रही थी यह महज सयोंग नहीं था। एक प्रयोग चल रहा था जिसमें यूट्यूब, फेसबुक, ट्वीटर सबको शामिल किया गया था।
आपको लग रहा होगा कि बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने अचानक वीआरएस लिया और चुनावी मैदान में आ गए। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। उनकी चुनावी तैयारी काफी पहले से शुरू हो गई थी और इसमें बिहार के नीतीश कुमार बखूबी भूमिका भी निभा रहे थे।
इसको आप ऐसे समझ सकते हैं कि गुप्तेश्वर पांडेय ने वीआरएस लेने के बाद कहा था कि वह अभी सोच-विचार करेंगे और फिर तय करेंगे कि चुनाव लड़ना है या नहीं। उन्होंने पार्टी का तो जिक्र तक नहीं किया था।
और फिर वह अचानक दो दिन बाद ही जदयू की सदस्यता ग्रहण करते हैं और उनको खुद नीतीश कुमार सदस्यता दिलाते हैं। यह भी आप संयोग समझ सकते हैं लेकिन ऐसा है बिल्कुल भी नहीं।
गुप्तेश्वर पांडेय ने कई महीने पहले ही अपना एक यूट्यूब चैनल बनाया था। प्रोफेसनल लोगों द्वारा उनका फेसबुक और ट्वीटर अकॉउंट संभाला जा रहा था।
जब बिहार के गोपालगंज में तिहरे हत्याकांड पर लोगों ने सरकार से सवाल किए थे तब गुप्तेश्वर पांडेय ने विपक्ष को ही आड़े हाथों लिया था। यहां पर भी उनकी बयानबाजी एक नेता के रूप में देखने को मिली थी।
उस समय तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार सरकार पर सवाल खड़े किए थे। दरअसल उस हत्याकांड की साजिश में नीतीश की पार्टी के एक विधायक का नाम सामने आ रहा था। इसके बाद ही गुप्तेश्वर पांडेय ने बयान देकर विपक्ष को ही आड़े हाथों ले लिया था।
उन्होंने कहा था, ‘बिना पूरी जांच किये किसी को भी हत्या की साजिश रचने के लिए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। संवैधानिक पद पर बैठे लोगों को आरोप लगाने से पहले तथ्यों को जांच लेना चाहिए।
यह भी महज संयोग नहीं हो सकता कि गुप्तेश्वर पांडेय को स्वैच्छिक रिटायरमेंट के लिए तीन महीने की नोटिस पीरियड से भी छूट मिल गई। और रिटायरमेंट के महज 5 दिन में ही जदयू में शामिल हो गए।
पांडेय इससे पहले 2009 में भी वीआरएस ले चुके हैं। तब ऐसी चर्चाएं थीं कि वह बक्सर से चुनाव लड़ेंगे लेकिन जब भाजपा के लालमणि चौबे ने वह सीट खाली करने से मना कर दिया तो मामला फंस सा गया था।
खैर तब गुप्तेश्वर पांडेय ने चुनाव तो नहीं लड़ा लेकिन राजनीति में आने की उनकी एक कसक जरूर रह गई जो अब जाकर बाहर निकली है। उस समय नीतीश कुमार ने गुप्तेश्वर पांडेय के लिए सिफारिश की थी जिसके बाद उन्हें आईजीपी के पद पर तैनाती मिली थी।
अब आप सोचिए आज से 10 साल पहले यदि किसी मुख्यमंत्री की सिफारिश भर से वीआरएस के बाद आईजीपी पद पर तैनाती मिली हो तो वह भला अहसान कैसे भूल सकता है। नीतीश कुमार अब उसी अहसान का लाभ लेकर बिहार में एक हवा बनाने का काम करेंगे।
ज्यादा न सही कुछ सीटों पर भी यदि गुप्तेश्वर पांडेय की वजह से जदयू को लाभ मिल जाएगा तो यह फायदे का ही सौदा होगा। साथ ही पुलिस विभाग में उनके अनुभव और लिंक का और फायदा।
अब अंदाज इससे भी लगा सकते हैं कि रिया चक्रवर्ती को लेकर उन्होंने जिस प्रकार की बयानबाजी की और नीतीश कुमार का महिमामंडन किया वह भी चुनावी तैयारी का एक क्रम था।
गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा था कि बिहार के मुख्यमंत्री पर टिप्पणी करने की औकात रिया चक्रवर्ती की नहीं है। वह शायद भूल गए थे कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां सभी को बराबर अधिकार मिले हुए हैं। क्या नीतीश कुमार और क्या वह स्वयं!