भारत में साल भर चुनाव होते रहते हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां लोकलुभावन वादे जमकर करती हैं भले वो पूरा करें या न करें। कोरोना संकट के बीच देश के कई राज्यों में चुनाव होने हैं। इनमें बिहार का चुनाव काफी नजदीक और महत्वपूर्ण भी है।
जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 30 जून को देश को संबोधित कर रहे थे तब उन्होंने नवंबर तक के त्यौहारों का भी जिक्र कर दिया। इसमें उन्होंने झठ पूजा का भी जिक्र किया जो बिहार में काफी धूम-धाम से मनाया जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के झठ पूजा के जिक्र करने के पश्चात लोगों ने बिहार चुनाव जोड़ दिया। ट्वीटर पर बिहार चुनाव ट्रेंड करने लगा। यही नहीं प्रधानमंत्री द्वारा गरीब कल्याण अन्न योजना को नवंबर तक बढ़ाने के निर्णय को भी चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री के घोषणा के तुरंत बाद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी मुफ्त राशन को अगले साल जून तक के लिए बढ़ा दिया। बंगाल में अगले साल जुलाई से पहले चुनाव हो सकते हैं क्योंकि वर्तमान सरकार का कार्यकाल उसी समय खत्म हो हो रहा है।
बिहार में झठ पूजा तो बंगाल में दुर्गा पूजा सबसे बड़ा धार्मिक-सांस्कृतिक उत्सव है। हमारे प्रधानमंत्री ने इन दोनों का जिक्र अपने भाषण में किया है। अब सवाल यह है कि क्या बीजेपी ने इन चुनावों की तैयारियां अभी से करनी शुरू कर दी हैं।
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ममता बनर्जी द्वारा की गई घोसणा भी कहीं न कहीं एक चुनावी तैयारी का हिस्सा हो सकती है। जिस प्रकार से कोरोना संकट के बीच लोगों को खाने के लिए भी राशन नहीं मिल पा रहा है उस समय इन घोषणाओं से बड़ी तादात में जनता को अपनी पार्टी के लिए वोट बैंक के रूप में तैयार किया जा सकता है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा, ‘ हमारा राशन केंद्र सरकार के राशन स3 बेहतर है। पश्चिम बंगाल के सिर्फ 60 प्रतिशत लोगों को केंद्र का राशन मिलता है।’ अब इस वक्तव्य से साफ समझा जा सकता है कि लोकलुभावन का सिलसिला शुरू हो चुका है।
यदि बिहार-बंगाल के चुनाव न होते तो शायद जनता को राशन भी नसीब न होता?